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Kashish Shayari
बिछुड़कर सहेली से घर शाम को
बिछुड़कर सहेली से घर शाम को
बिछुड़कर सहेली से घर शाम को जाती हो
भरी दोपहरी तन बेचकर कितने दम कमाती हो
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मालुम था कुछ नही होगा हासिल
बेटी को जिसने मरवा दिया था
हारना तब आवश्यक हो जाता हैं
ठान लिया था कि अब और
जिसको कराती ऐश वही अब करेगा
शायरी करना भी तो एक नेकी
वो लफ्ज कहां से लाऊं जो
Thoda or btao mere barye main
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