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Two Lines
Kashish Shayari
मोसम की तरह बदलते हें उस
मोसम की तरह बदलते हें उस
मोसम की तरह बदलते हें उस के वादे
उपर से ये ज़िद क तुम मुझ पे एतबार करो
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मुस्कुरा के देखो तो सारा जहाँ
कुछ इस अदा से तोड़े है
तेरी महफ़िल से उठे तो किसी
मुझे अपने किरदार पे इतना तो
देख जिँदगी तू हमे रुलाना छोड
Na rha kro udas kisi bewaffa
खुद ही मुस्कुरा रहे हो साहिबपागल
कफन मे लिपटा देखकर माथा चूम
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