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Two Lines
Sad Shayari
ना जाने क्यो दिन निकलते ही
ना जाने क्यो दिन निकलते ही
ना जाने क्यो दिन निकलते ही उदास हो जाता हुँ
महसूस होता है कि कोई भूल रहा है हमे धीरे-धीरे
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कुछ दर्द मुझे तू सहने दे
अधूरेपन का मसला ज़िंदगी भर हल
सूनो हम तो गरीब ही थे
मुहब्बत के साए में आज़ाद रह
जब बिखरेगा तेरे रूखसार पर तेरी
तलाश कर लो मेरी कमियों को
लाश पता नही किस बदकिस्मत की
इश्क करते है तुमसे इसलिए खामोश
रात भर चलती रहती है उँगलियाँ
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