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Taarif Shayari
आग लगाना मेरी फितरत में नही
आग लगाना मेरी फितरत में नही
आग लगाना मेरी फितरत में नही है
मेरी सादगी से लोग जलें तो मेरा क्या कसूर
Er kasz
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कभी काजल कभी बिंदिया कभी चूड़ी
लफ़्जो को पिरोने का हुनर सिखा
जो मेरे बूरे वक्त मे मेरे
ज़रा देख ये दरवाज़े पे दस्तक
मुझे अपने किरदार पे इतना तो
मेरे बारे में इतना मत सोचो
तुम्हारे होठों पे लिखना उधार रहादिल
आज कुछ और नहीं बस इतना
खुशबू क्यूँ न आये मेरी बातों
तेरी जुल्फें इशारों में कह गयी
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