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Taarif Shayari
आज मेरे शहर में धूप खिली
आज मेरे शहर में धूप खिली
आज मेरे शहर में धूप खिली खिली सी है
पता नहीं सूरज निकला है या घर से वो निकली है
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जलन जन्नत को भी होती तो
प्यार मोहब्बत आशिकीये बस अल्फाज थेमगर
नजर से दूर होकर मुझको भूल
लाख समझाया उसको कि दुनिया शक
उसकी चाल ही काफी थी मेरे
आज कुछ और नहीं बस इतना
बात उन्हीं की होती है जिनमें
निगाहें शोखियां दे दो या अपना
लाख गुलाब लगा लो तुम अपने
वजह बताऊं तो सारी उम्र गुजर
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