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Taarif Shayari
इतनी अजीब शख्सियत है मेरी मेरे
इतनी अजीब शख्सियत है मेरी मेरे
इतनी अजीब शख्सियत है मेरी
मेरे आते ही महफ़िल जम जाती है
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ग़ज़ब है उसका हंस के नज़र
ज़र्रा ज़र्रा जल जाने को हाज़िर
तेरी आँखों से दो घूंट शराब
बदल जाती हो तुम कुछ पल
अपने इन शरबती होठों को किसी
नजर मिलाके अदा से मुस्कुराती होचोर
झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ
आपकी सादगी पे क़त्लऐआम हुवे जाते
तुम्हे तकलीफ न हो जरा भी
मुझे मिल गई है मुहब्बत की
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