कल घर से निकले थे, माँ के हाथो के बने पराठे खा कर...
आज सड़क किनारे चाय तलाश रही है जिंदगी...!! Er kasz
कल घर से निकले थे, माँ के हाथो के बने पराठे खा कर...
आज सड़क किनारे चाय तलाश रही है जिंदगी...!! Er kasz
बड़ी सादगी से उसने कह दिया रात को सो भी लिया कर
रातों को जागने से मोहब्बत लौट नहीं आती
er kasz
में बंदूक और गिटार दोनों चलाना जानता हूं
तय तुम्हे करना हे की आप कौन सी धुन पर नाचोगे
er kasz
तू अगर चला गया छोड़कर मुझे अकेला
तो ले जाना उन पलों को भी जो तेरे बिना मेरी जान ले लेगें
er kasz
ये नजर चुराने की आदत आज भी नहीं बदली उनकी
कभी मेरे लिए जमाने से और अब जमाने के लिए हमसे
er kasz
उसकी चाल ही काफी थी मेरे होश उडाने के लिए
अब तो हद हो गई है जबसे वो पाँव मे पायल पहनने लगी है
चांद-सितारों से भी अच्छी लगती हो तुम
दुनिया में बहुत खूबसूरत हैं मगर, सबसे खूबसूरत हो तुम
क्या खूब हुनर है तेरा मेरे बस्ते से कोई पेंसिल नही चुरा सका
और तू सीने से दिल उड़ा कर चल दी
er kasz
लत लग गई हमे तो अब तेरे दीदार-ए-हुस्न की
इसका गुन्हेगार किसे कहे खुद को या तेरी कातिल अदाओ को
झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ सुबह और शाम मैं
सच बोलने की अदा ने हमसे कई अजीज़ यार छीन लिये
Er kasz
चूमे तेरी तस्वीर को भी अक्सर इतना आहिस्ता से
कि लग ना जाए उस पे कहीं नापाक मेरे होठो के निशान
रहने दे ना अपने इन लबो पर लाली अच्छी लगती है
झूठ कितना भी बोले पर तेरी हर बात इनसे सच्ची लगती है
यही हालात इब्तदा से रहे लोग हमसे ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन ये भी सच है कि बेवफ़ा से रहे
ヅ ♚#उस दिन भी कहा था और आज फिर सुन ले
सिर्फ उमरही छोटी है लेकिन #सलाम तो सारी
!दुनिया ठोकती है. ♚ ヅ....
G.R..s
अपनी आदतों के अनुसार चलने में इतनी गलतियाँ नहीं होती हैं
जितनी दुनिया का लिहाज रखकर चलने में होती हैं
Er kasz