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Zindagi Shayari
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ
er kasz
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जिंदगी से कोई दुश्मनी नही मेरीएक
लगाई तो थी आग उनकी तस्वीर
आखोँ में तेरे सपने होठों पे
एक दूसरे से बिछड़ के हम
बहुत भीड़ थी उस बुज़ुर्ग के
एक ख़त कमीज़ में उसके नाम
हवाएं बदल गई हैं इस कदर
जितना आज़मा सकते हो आज़माओ सब्र
जिंदगी में पीछे देखोगे तो अनुभव
अर्जुन भीम युधिष्ठिर सारे समा गए
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