मुकद्दर में लिखा के लाये हैं दर-ब-दर भटकना.
मौसम कोई भी हो परिंदे परेशान ही रहते हैं
er kasz

बहुत तकलीफ देती है ना मेरी बातें तुम्हे
देख लेना एक दिन मेरी ख़ामोशी तुम्हे रुला देगी

वो एक मौका तो दे हमे बात करने का.
वादा है
उन्हें भी रुला देंगे उन्ही के सितम सुना -सुना कर...

हमने सोचा था की बताएँगे उनको सब दुःख दर्द अपना.
उसने तो इतना भी नहीं पूछा के "उदास" क्यों हो.

आज आईने के सामने खड़े होकर खुद से माफ़ी मांग ली मैंने ...
सबसे ज़्यादा खुद का ही दिल दुखाया है औरों को खुश करने में ...

तेरे बिना मैं ये दुनिया छोड तो दूं पर उस माँ दिल कैसे दुखा दुं
जो रोज दरवाजे पर खडी कहती है “बेटा घर जल्दी आ जाना “

ज़रूरी नहीं कि जीने का कोई सहारा हो,
ज़रूरी नहीं कि जिसके हम हों वो भी हमारा हो,
कुछ कश्तियाँ डूब जाया करती हैं,
ज़रूरी नहीं कि हर कश्ती के नसीब में किनारा हो

थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

शायरी जुर्म नहीं शायरी शौक नही..
यह एक सजा है महज़ दिलजलों के लिए..

ना करवटे थी, ना बैचेनियाँ थी..
क्या गज़ब की नींद थी मोहब्बत से पहले.

मत पूछ दास्तान ऐ इश्क
जो रूलाता है, उसी के गले लगकर रोने का मन करता है

मुझे किसी के छोड़ जाने का दुख नहीं
बस कोई ऐसा था जिस से यह उम्मीद ना थी..

खुद पर भरोसे का हुनर सीख ले
लोग जितने भी सच्चे हो साथ छोड़ ही जाते हैं…

लाख चाहा कि...तुझे याद न करूँ....
लेकिन..!!
इरादे.. अपनी जगह... बेबसी... अपनी जगह...!!

मुझ से ऐ आईने मेरी बेकरारियाँ मत पूछ
टूट जाएगा तू भी मेरी खामोशियाँ सुन के