उम्र गुज़र गई उससे बिछड़े अब मुझे ज़माना हो गया है
मेरा ग़म भी बढ़ते बढ़ते और सुहाना हो गया है
उम्र गुज़र गई उससे बिछड़े अब मुझे ज़माना हो गया है
मेरा ग़म भी बढ़ते बढ़ते और सुहाना हो गया है
तलाश कर लो मेरी कमियों को अपने ही दिल में एक बार
दर्द हो तो समझ लेना मोहब्बत अभी बाकि है
जरा बताओ तो किसे गुरुर है अपनी दौलत पर
चलो उसे बादशाहों से भरा कब्रस्तान दिखाता हु
er kasz
ज़ुल्म इतने ना कर के लोग कहे तुझे दुश्मन मेरा..
मैंने ज़माने को तुझे अपना प्यार बता रखा है.
पूछा था हाल उन्होंने बडी मुद्दतों के बाद...
कुछ गिर गया है आँख में,कहकर रो पड़े हम...
घायल
क्यों न सज़ा मिलती हमें मोहब्बत में आख़िर
हमने भी बहुत दिल तोड़े थे उस शख्स की ख़ातिर.....
मत फेर निगाँहे कम्बख़त हमें देख कर
खुद भी रो पड़ेगा हमरे प्यार की तौहीन होती देख कर
er kasz
सिर्फ एक बार आओ मेरे दिल में अपनी मोहब्बत देखने
फिर लौटने का इरादा हम तुम पर छोड़ देंगे
तू अगर चला गया छोड़कर मुझे अकेला
तो ले जाना उन पलों को भी जो तेरे बिना मेरी जान ले लेगें
er kasz
ज़ुल्म इतना ना कर की लोग कहेँ तुझे दुश्मन मेरा...
हमने ज़माने को तुझे अपनी जान बता रख्खा हे..
दोस्तों का क्या है वो तो यों ही बन जाते है मुफ़्त में,
आओ चलो आज सच बोलकर कुछ दुश्मन बनाये ।Er kasz
जिंदगी तो उसकी है जिसकी मौत पे जमाना अफसोस करे
वरना जनम तो हर किसी का मरने के लिए ही होता है
एक ख़त कमीज़ में उसके नाम का क्या रखा
क़रीब से गुज़रा हर शख़्श पूछता है कौन सा इत्र है जनाब
Er kasz
अगर किसी दिन रोना आये,
तो कॉल करना,
हसाने की गारंटी नही देता हूँ,
पर तेरे साथ रोऊंगा जरुर
ज़रूरी तो नहीं के शायरी वो ही करे जो इश्क में हो
ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल दिया करती है