जिस घाव से खून नहीं निकलता
समझ लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है
Er kasz
जिस घाव से खून नहीं निकलता
समझ लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है
Er kasz
बेरुख़ी इससे बड़ी और भला क्या होगी
एक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नहीं
मुझसे खुशनसीब है मेरे ये अलफाज
कुछ देर ही सहि पडेगी इनपर निगाहे तेरी
हो जाऊं तेरे इश्क़ में मशग़ूल इस क़दर
कि होश भी वापस आने की इज़ाज़त मांगे...!! Er kasz
बेवफाई के सितम तुमको भी समझ आ जाते
काश होता अगर तुम जैसा तुम्हारा कोई
जख्मो को हरा रखना अच्छा लगता है
यही तो सबूत बाकि हैं तेरी मुहोब्बत के
जख्मो को हरा रखना अच्छा लगता है
यही तो सबूत बाकि हैं तेरी मुहोब्बत के
बदला लेने में क्या मजा है
मजा तो तब है जब तुम सामने वाले को बदल डालो
Er kasz
कितने आसान से लफ़्ज़ों में कह गया वो..
के बस दिल ही तोडा है कोनसी जान ली है..
धडकनो को भी रास्ता दे दीजिये जनाब
आप तो सारे दिल पर कब्जा किये बैठे है
रात को कहो जरा धीरे धीरे गुजरे
काफी मिन्नतों के बाद दर्द सो रहा है
Ek Musafi
कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
ना जाने क्या बात है तेरे दिये हुए ग़मों मे
लोग बिना दाद् दिये नही रहते
चल ऐ दिल किसी अनजान सी बस्ती में
इस शहर में तुझसे सभी नाराज ही रहते हैं
खामोशियाँ उदासियों की वजह से नहीं,
बल्कि यादों की वजह से हुआ करती हैं..