आज कुछ नही है मेरे पास लिखने के लिए
शायद मेरे हर लफ्ज़ ने खुद-खुशी कर ली
आज कुछ नही है मेरे पास लिखने के लिए
शायद मेरे हर लफ्ज़ ने खुद-खुशी कर ली
में अक्सर अकेला रेह जाता हूँ
क्युकी में हमेश उनके सहारे रेहता हूँ
er kasz
मुझमे कुछ न बचा तेरी मोहब्बत के सिवा
तू चाहे तो मेरी रूह की तलासी ले ले
लिख दे मेरा अगला जनम उसके नाम पे ए खुदा
इस जनम में ईश्क थोडा कम पड गया है
वक्त के तराजू में अब किसे रखूँ
सांसों का हर रिश्ता वो तोड गया मुझसे
Er kasz
दुकानें उसकी भी लुट जाती है,
जो दिन भर में न जाने कितने ताले बेच देता है !
उम्र कैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते जहा जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नही ! Er kasz
फुरसत अगर मिले तो मुझे पड़ना जरूर
मै नायाब उलझनों की मुकम्मल किताब हूं
इश्क का धंधा ही बंघ कर दिया साहेब
मुनाफे में जेब जले और घाटे में दिल
er kasz
ज़र्रा ज़र्रा जल जाने को हाज़िर हूँ,
बस शर्त है कि वो ...आँच तुम्हारी हो. Er kasz
खुशियाँ भी तरसती हैं मुझसे मिलने को और ग़म तो जैसे
कोई जिगरी यार हो मेरा
देखना मै तुम्हे कहीं भूल ही न जाऊं
इतने मुद्दतों तक कोई खफा नहीं रहते Er kasz
जीवन को केवल पीछे देखकर समझा जा सकता है
लेकिन इसे आगे की तरफ जीना चाहिए
जो नासमझ है वो ही मोहब्बत करता है
वो मोहब्बत ही क्या जो समझ में आ जाए
er kasz
ज़िंदगी मे इससे बढकर रंज क्या होगा
उसका ये कहना की तू शायर है दीवाना नही