खुद ही मुस्कुरा रहे हो साहिब
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पागल हो या मोहब्बत की शुरूआत हुई है
er kasz

वो तडफाना चाहती है, मैं उसको पाना चाहता हूं.
बस यही फर्क है हम दोनों में.

वक्त के तराजू में अब किसे रखूँ
सांसों का हर रिश्ता वो तोड गया मुझसे
Er kasz

दुकानें उसकी भी लुट जाती है,
जो दिन भर में न जाने कितने ताले बेच देता है !

अजब दस्तूर है ज़माने का
लोग यहाँ पूरी इमानदारी से अपना ईमान बेचते हैं

प्यार कहा किसी का पूरा होता है ,
प्यार का तो पहला अक्षर ही अधूरा होता है !!

उम्र कैद की तरह होते हैं कुछ रिश्ते जहा जमानत देकर भी रिहाई मुमकिन नही ! Er kasz

इश्क का धंधा ही बंघ कर दिया साहेब
मुनाफे में जेब जले और घाटे में दिल
er kasz

ज़र्रा ज़र्रा जल जाने को हाज़िर हूँ,
बस शर्त है कि वो ...आँच तुम्हारी हो. Er kasz

कर लो इकरार जब तक जिन्दा हूँ,
फिर ना कहना चला गया पागल दिल मे यादे छोड़ कर..!

सारा ही शहर उस के जनाजे में था शरीक
तन्हायों के खौफ से जो शख्स मर गया
er kasz

कितने सितम करोगे इस टूटे हुए दिल पर
थककर बताना जरूर मेरा जुर्म क्या था

कौन कहता है के वो मुझसे बिछड़कर खुश है
उसके सामने मेरा नाम तो लेकर देखो

देखना मै तुम्हे कहीं भूल ही न जाऊं
इतने मुद्दतों तक कोई खफा नहीं रहते Er kasz

छोटे शहर के अखबार जैसा हूं मैं
दिल से लिखता हूं शायद इसलिए कम बिकता हूं