मुददतों से तू पी रहा है यह ज़हर दर्द का
मौत तुझे ऐ दिल फिरभी क्योँ नहीं आती

लगाकर आग़ सीने में कहाँ चले हो तुम हमदम
अभी तो राख़ उडने दो तमाशा और भी होगा

मैंने जान बचा के रखी है एक जान के लिए
इतना इश्क कैसे हो गया एक अनजान के लिए

मत पूँछ मेरे जागने की वजह
ऐ-चाँद तेरा ही हम शकल है वो जो मुझे सोने नही देता

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम

अजीब रंग मे गुजरी है जिन्दगी अपनी
दिलो पर राज किया और मोहब्बत को तरसे
Er kasz

होली आई अौर चली गई...थोड़ी देर बाद रंग
भी उतर गया,ये होली बिल्कुल तुम सी लगी

नसीब का खेल भी अजीब तरह से खेला हमने
जो न था नसीब में उसी को टूट कर चाह बैठे

ये नज़रें तो किसी को देखना ही नहीं चाहती ,
तो दिल में कैसे बसाएंगी किसी को ,

उसे गैरो के साथ बात करते देखा तो दुख हुआ,
फिर याद आया हम कौन सा उसके अपने थे.

ख़बर नहीं मुझे यह ज़िन्दगी कहाँ ले जाए
कहीं ठहर के मेरा इंतज़ार मत करना।

बगैर जिसके एक पल भी गुजारा नहीं होता
सितम देखिए वही शख्स हमारा नहीं होता

हमनेँ पूछाँ कैसे निकलती है जान एक पल मे
उसने चलते चलतें मेरा हाथ छोड दिया

तरस गए हैं तेरे लब से कुछ सुनने को हम.
प्यार की बात न सही कोई शिकायत ही कर दे..

वो तो शायरों ने लफ़झों से सजा रखा है
वरना महोब्बत इतनी भी हसीं नहीं होती....!!!