उसे अपना कहने की बड़ी तमन्ना थी दिल मे.
इससे पहले बात लबो पर आती वो गैर हो गये...

एहसास ए मुहब्बत के लिए बस इतना ही काफी है
तेरे बगैर भी हम तेरे ही रहते है
Er kasz

उसकी याद आई है साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता है

टूट सा गया है मेरी चाहतो का वजूद
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इजहार नही करते
Er kasz

ख़ता ये नहीं कि उसने भूला क्यों दिया
सवाल ये है कि वो मुझे अब याद क्यों है
Er kasz

ये सोच कर तेरी महफ़िल में चला आया हूँ
तेरी सोहबत में रहूँगा तो संवर जाऊंगा

न होता कोई ताल्लुक तो खफ़ा क्यों होती
बेरुखी भी उसकी मुहब्बत का पता देती है

मुझे ढूंढने की कोशिश न किया कर पगली
तूने रास्ता बदला मैंने मंज़िल ही बदल दी

तेरी यादें हर रोज़ आ जाती है मेरे पास
लगता है तुमने बेवफ़ाई नही सिखाई इनको

क्या लिखूँ दिल की हकीकत आरज़ू बेहोश है
ख़त पर हैं आँसू गिरे और कलम खामोश है

हकिकत से बहोत दूर है ख्वाहिश मेरी
फिर भी एक ख्वाहिश है कि एक ख्वाब हकिकत हो

यही सोच कर उसकी हर बात को सच मानते थे
के इतने खुबसूरत होंठ झूठ कैसे बोलेंगे

मगरूर हमें कहती है तो कहती रहे दुनिया
हम मुड़ कर पीछे किसी को देखा नहीं करते

अरे तुम भी निकले हो वफ़ा की तलाश में
यकीन मानो नही मिलती नही मिलती नही मिलती

मेरी बर्बादिओं में कुछ तेरा भी हाथ था ....... क्या इस बात का अब तुझसे शिकवा भी न करू ??