हम जा रहे हैं वहाँ जहाँ दिल की हो कदर
तुम बैठे रहना अपनी अदायेँ सम्भाल कर

तस्वीरोँ का रोग भी कैसा अजीब होता है
तन्हाई मेँ बात करो तो बोलने लगती हैँ

कोई तेरे साथ नहीं है तो गम ना कर
खुद से बढ़कर कोई दुनिया में हमसफ़र नहीं होता

काश कि ये इश्क भी चुनावों की तरह होता
हारने के बाद दिल खोल कर बहस तो कर लेते

लगाई तो थी आग उनकी तस्वीर में रात को
सुबह देखा तो मेरा दिल छालो से भर गया
er kasz

बहुत कुछ कहना है पर कहूँ भी तो किसे कहूँ
ख़ुद से ही इतना ख़फ़ा ख़फ़ा रहता हूँ आजकल

ठान लिया था कि अब और नहीं लिखेंगे
पर उन्हें देखा और अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे
er kasz

वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
er kasz

खुद ही ना छुपा सके वो अपने चहरे को नकाब में
बेवजह हमारी आँखों पर इल्जाम आ गया

लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताब
कहाँ कहाँ नहीं रखता तेरी यादों का हिसाब
er kasz

अगर होता है इत्तेफाक़ तो यूँ क्यों नहीं होता
तुम रास्ता भूलो और मुझ तक चले आओ

लफ्ज़ों में वो बात कहाँ जो मज़ा आँखों ही आँखों में बात करने का हैं
वो कमाल हैं

दिल से ही हुक्म लेते है दिल से ही सबक लेते है
आशिक कभी उस्तादो की माना नही करते

अजीब पैमाना है यहाँ शायरी की परख का
जिसका जितना दर्द बुरा शायरी उतनी ही अच्छी

बेटियों के जन्म पर मातम मनाने वालों
आज उस घर में जाकर देखो जहाँ बेटियाँ नही है