वहा तक तो साथ चल जहा तक मुमकीन है।
जहा हालात बदल जाये तुम भी बदल जाना
Er kasz

मेने कहा था न की मुझे अपने दिल में ही रहने दो
बेघर बच्चा आवारा हो जाता हे

ना शाख़ों ने जगह दी ना हवाओ ने बक़शा
वो पत्ता आवारा ना बनता तो क्या करता
er kasz

बदल जाती हो तुम कुछ पल साथ बिताने के बाद
यह तुम मोहब्बत करती हो या नशा
Er kasz

बिछुड़कर सहेली से घर शाम को जाती हो
भरी दोपहरी तन बेचकर कितने दम कमाती हो

बदला हुआ वक़्त है ज़ालिम ज़माना है
यहां मतलबी रिश्ते है फिर भी निभाना है
Er kasz

जिसको कराती ऐश वही अब करेगा गुलामी
पल्ले में पहले ही बहुत है अपने बदनामी

एहसास बदल जाते हैं बस और कुछ नहीं
वरना मोहब्बत और नफरत एक ही दिल से होती है

अमीर होता तो बाज़ार से खरीद लाता नकली
गरीब हूँ इसलीये दिल असली दे रहा हु
Er kasz

कुछ इस अदा से तोड़े है ताल्लुक़ात उसने
की मुद्दत से ढूंढ़ रहा हु कसूर अपना
er kasz

एहसास ए मुहब्बत के लिए बस इतना ही काफी है
तेरे बगैर भी हम तेरे ही रहते है
Er kasz

लगाई तो थी आग उनकी तस्वीर में रात को
सुबह देखा तो मेरा दिल छालो से भर गया
er kasz

सुन कर ग़ज़ल मेरी वो अंदाज़ बदल कर बोले
कोई छीनो कलम इससे ये तो जान ले रहा है
er kasz

टूट सा गया है मेरी चाहतो का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इजहार नही करते
Er kasz

ठान लिया था कि अब और नहीं लिखेंगे
पर उन्हें देखा और अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे
er kasz