Hadd ho gai intezar ki
aisi ki taisi aise pyar ki
Zindagi me Sub Par Aaitbar Karo
Magar Dil Par Nahi Karna
Us ko bas itna kah dena WASI
Main us k bager tanha he nahe Adhoora bhe hoon
Na kaha karo har bar k hum tmhen chorr dengy
Na hum itny Aam hain na ye tery Bas ki bat hai
Kuch Nahi Milla Bus Aik Sabbaq De Gaya Ishq
Khak Hojata Hai Insan Khak Se Bane Insan K Pichay
er kasz
बेबसी की इक हद ये भी है, ना तुम मेरे हो और ना मैं अपना हूँ..
बुढ़ापा इश्क के कांटे समेटने आया
जवानी हुस्न के फूलो से खेलती आयी
बहुत थे मेरे भी इस दुनिया मेँ अपने
फिर हुआ इश्क और हम लावारिस हो गए
Er kasz
ज़िन्दगी का ये हूनर भी आज़माना चाहिए
जंग अगर अपनो से हो तो हार जाना चाहिए
er kasz
ये जो हलका हलका उस कमबख्त में गुरुर है
कैसे कहूँ सब मेरी तारीफों का ही कसूर है
कौन कहता है के दिल सिर्फ लफ्ज़ो से दुखाया जाता है..
कभी-कभी ख़ामोशी भी तो बड़ी तकलीफ़ देती है...!!
प्रेम के बाग लगाकर तुम ये कैसे फूल खिलाती हो
पुण्य की नाव डूबकर तुम क्यों पाप की नाव चलती हो
मौत को तो मैंने कभी देखा नहीं पर वो यकीनन बहुत खूबसूरत होगी,
कमबख्त जो भी उससे मिलता ह जिंदगी जीना ही छोड़ देता है.
Khud hi de jaoge to behtar hai
Warna hum dil chura bhi lete hain
Yun Tasalli De Rahe Hain Hum Dil-e-Bimaar Ko,
Jis Tarah Thaame Koi Girti Hui Deewar Ko!