बन्दा खुद की नज़र में सही होना चाहिए
दुनिया तो भगवान से भी दुखी है

जरा दील से पुकार के देख
आज भी मेरा नाम तेरी जुबा पे अच्छा लगता हैं

पूछोगे दिमाग से तो कई दलीलें देगा
बात मान लो दिल की वो इश्क़ ही था

याद नहीं मै रूठी थी..या वो रूठा था
साथ हमारा बस जरा सी बात पे छूटा था

में कैसे उस शख्श को रुला सकता हुँ,,,
जिस को खुद मेने रो रो के मांगा हो

क़ुसूर नहीं इसमें कोई उनका
मेरी चाहत ही इतनी थी की उनको गुरूर आ गया

कोई हमे भी सिखा दो ये लफ्जों से खेलना
दर्द हमारे पास भी बेहिसाब है

खफा नहीं हूँ तुझसे ए जिंदगी
बस जरा दिल लगा बैठा हूँ इन उदासियों से

ए इश्क मुझको कुछ और जख्म चाहियें
अब मेरी शायरी में वो बात नहीं रही

शराब चीज़ ही ऐसी हाए ना छोडी जाए
ये मेरे यार के जैसी हाए ना छोडी जाए

बड़ी बेवफ़ा बेरहम हैं ये साँसे
रहती हैं मेरे साथ चलती हैं उसके लिए

कोठे पे वो खड़े हैं दोपटटे को तन के
क्या परबते दीदार पिलायेगी छान के

समझा दो अपनी यादों को तुम ज़रा
दिन रात तंग करती हैं कर्ज़दार की तरह

ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत है सब कहते थे
जिस दिन तुझे देखा यकीन भी हो गया

की बाशिंदे हे हम उस आशियाने के
जिसके चमन में मुहब्बत कहानी सी रह गई