रुठुंगा अगर तुजसे तो इस कदर रुठुंगा की
ये तेरीे आँखे मेरी एक झलक को तरसेंगी

बच न सका ख़ुदा भी मोहब्बत के तकाज़ों से
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला

चीखता चिल्लाता एहसास बे आवाज़ हो गया है
प्यार अब प्यार ना रहा रिवाज़ हो गया है

उज़ड़ जाते है सर से पाव तक वो लोग
जो किसी बेपरवाह से बेपनाह मोहब्बत करते हैं

वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
er kasz

उम्र भर उठाया बोझ दीवार पर लगी उस कील ने .......
और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे ... Er kasz

वो कहते हैं बता तेरा दर्द कैसे समझूँ
मैंने कहा इश्क़ कर बहुत कर और करके हार जा

लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताब
कहाँ कहाँ नहीं रखता तेरी यादों का हिसाब
er kasz

कर कुछ मेरा भी इलाज ऐ हकीम-ए-मोहब्बत
जिस दिन उसकी याद नहीं आती सोया नहीं जाता

चाह कर भी पूछ नहीं सकते हाल उनका
डर है कहीं कह ना दे के ये हक तुम्हे किसने दिया

तुमने कहा था आँख भर के देख लिया करो मुझे
मगर अब आँख भर आती है तुम नजर नही आते हो

किसी के वादे पर क्यों एतवार किया हमने
ना आने वालों का क्यों इंतजार किया हमने

अगर होता है इत्तेफाक़ तो यूँ क्यों नहीं होता
तुम रास्ता भूलो और मुझ तक चले आओ

मिलने की तमन्ना जनाब से पूरी नहीं होती
सों यज्ञ के फासले की दुरी कम नहीं होती

दोस्तों ने पूछा किसने तकलीफ दी है
आइने के आगे खड़े थे सामने की तरफ उंगली उठ गई