कोई दावत तो उसे दे आए जाकर जनाज़े में मेरे शरीक़ होने की
आखिरी सफर में ही सही हमसफ़र बनाने की आरज़ू तो पूरी हो

तेरी आँखों के सिवा दुनियाँ में रखा क्या है ये उठे सुबह चले
ये झूके शाम ढले मेरा जीना मेरा मरना इन ही पलकों के तले
er kasz

‪#‎वो‬ तो ‪अपनी‬ एक ‪#‎आदत‬ को ‪#‎भी‬ ना ‪#‎बदल‬ सका,
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.........‪#‎जाने‬ क्यूँ मैंने ‪#‎उसके‬ लिए अपनी ‪#‎जिंदगी‬ बदल ‪#‎डाली‬ ! Er kasz