कभी चोट खाई कभी दिल संभाला
मोहब्बत भी एक खेल था, खेल डाला
कभी चोट खाई कभी दिल संभाला
मोहब्बत भी एक खेल था, खेल डाला
ज़ख्म क्या दिखाऐ मैने अपने
लोगों ने नमक से मुठियाँ भर ली
झूठ बोलता होगा कभी चाँद भी
इसलिए तो रुठकर तारे टूट जाते हैं
रात बीत गई तेरी बाहो मे
मै ढुढता रहा तुझको अपनी बाहो में ...❗❗
मेरी खुद्दारी इजाज़त नही देती
कैसे कहूँ कि मुझे तेरी जरुरत है
🍷कुछ लफ्जों को बहकाया महकाया,
फिर भी तेरी खुबसुरती बयां न हुई..ll
दिलो को मिलाने का शोख रखो
दिल को तोडने का शोख तो हर कोइ रखता है
एहसान नहीं है जिन्दगी तेरा मुझ पर
मैंने हर सांस की यहाँ कीमत दी है
अजीब जुल्म करती है तेरी ये यादें
सोचू तो बिखर जाऊ ना सोचू तो किधर जाऊ
कुसूर नही इसमे कुछ भी उनका
हमारी चाहत ही इतनी थी के उन्हे गुरुर आ गया.
हम ना बदलेंगे वक्त की रफ्तार के साथ,
हम जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा.
देखकर दर्द किसी का जो आह निकल जाती है
बस इतनी सी बात आदमी को इन्सान बनाती है
बिछड़ के तुमसे मैं ज़िन्दा रहूँ
मुमकिन नही ये ज़माना लाख कहे ऐतबार मत करना
नीँद मेँ भी गिरते है मेरी आँखो से आँसू
जब भी तुम ख्बाबो मे मेरा हाथ छोड देती हो
ये इश्क़ मोहब्बत की रिवायत भी अजीब है
पाया नहीं है जिसको उसे खोना भी नहीं चाहते