शिद्दत से कोई याद कर रहा है
मुद्दत से ये वहम जाता नही
नशा तब दोगुना होता है
जब जाम भी छलके और आँख भी छलके
er kasz
लोग सीने में क़ैद रखते हैं
हम ने सिर पे चढ़ा रखा है दिल को
मुझे तो इन्साफ चाहिए बस
दिल मेरा हैं तो मालिक तुम केसे
अपना इनाम लेकर ही मानेगा
ये इश्क है जान लेकर ही मानेगा
रिश्ता निभाने की बहुत कोशिश की
बस अब हिमत नहीं रही हैं
ज़िन्दगी तो कब की खामोश हो गई है
दिल तो बस आदतां धड़कता है
कितने बेबस हैं तेरी चाहत में
तुझे खो कर भी अब तक तेरे हैं
अजीब दस्तूर है मोहब्बत का
रूठ कोई जाता है टूट कोई जाता है.
सेल्फी तो मिनटों में बनती है
वक्त तो image बनाने में लगता है
Er kasz
जो सच है वो छुपा लेते हो मुझसे
तुम्हे तो अखबार होना चाहिए था
शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है
मेरे अन्दर बारिश होती रहती है
मेरी हर दुआ बेकार गयी
न जाने किसने चाहा था इतनी शिद्दत से उसे !