Kadam Ruk Se Gaye Hain Phool Biktey Dekh Kar Woh
Aksar Kaha Krta Tha Muhabbat Phool Jaisi Hai

धुँए की तरह उड़ना सीखो...
जलना तो लोग भी सीख गये हैं....

मरने का मज़ा तो तब है
जब कातिल भी जनाजे पे आकर रोये

सारी दुनिया की खुशी अपनी जगह
उन सबके बीच तेरी कमी अपनी जगह

कैसे फलेगी ये गूंगी मुहोब्बत
न हम बोलते हैं ना वो बोलते है

ख्वाब तो सो जाते है इन्तेजार में
मेरी करवटों को नींद नही आती

बस एक बार तुमसे बात हो जाए तो रात को दिल कहता है
आज दिन अच्छा था

दिल का अपनी हद से बाहर हो जाना
शायद इसे ही बेहद मोहब्बत कहते हैं

तमाम लोग मेरे साथ थे मगर मैं तो
तमाम उम्र तुम्हारी कमी के साथ रहा

जिस घाव से खून नहीं निकलता
समज लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है

तू इक क़दम भी जो मेरी तरफ बढ़ा देता
मैं मंज़िलें तेरी दहलीज़ से मिला देता

जो तड़प तुझे किसी आईने में न मिल सके..
तो फिर आईने के जवाब में मुझे देखना.!

जख्मो को हरा रखना अच्छा लगता है
यही तो सबूत बाकि हैं तेरी मुहोब्बत के

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा

चलो पूरी कायनात का बँटवारा करते है

तुम सिर्फ मेरे बाकी सब तुम्हारा