बगैर जिसके एक पल भी गुजारा नहीं होता
सितम देखिए वही शख्स हमारा नहीं होता

चलो छोड़ो तुम्हें क्या बताना मुहब्बत के दर्द को
जान जाओगे तो जान से जाओगे

मैं तुझे चाहकर भी अपना न बना सका
जब मरना चाहा तो तेरी यादों ने मरने भी न दिया

दिल सुलगता है तो धुआं क्यों नहीं उठता
क्यों वो आग अक्सर आसुओं में बह जाती है

तेरी यादों के नशे का आदि है ये दिल
जो इसका नशा न करू तो दिल धड़कने से मना करता है

बख्शे हम भी न गए बख्शे तुम भी न जाओगे
वक्त जानता है हर चेहरे को बेनकाब करना
Er kasz

सौ दुश्मन बनाए हमने किसी ने कुछ नहीं कहा
एक को हमसफर क्या बनाया सौ ऊँगली उठ गई

खुदा ने सब्र करने की तौफ़ीक़ हमें बख्शी है
अरे जी भर के तड़पाओ शिकायत कौन करता है

लफ्ज़ों में वो बात कहाँ जो मज़ा आँखों ही आँखों में बात करने का हैं
वो कमाल हैं

वेसे तो मैं ठीक हु तेरे बिछड जाने के बाद भी
बस दिल का ही डर है कही धडकना ना छोड दे

आस पास तेरा एहसास अब भी लिये बैठें हैं
तू ही नज़र अंदाज़ करे तो हम शिकवा किससे करे

जितना आज़मा सकते हो आज़माओ सब्र मेरा
हम भी देखें हम टूट कर कब तलक बिखरते हैं
er kasz

कहाँ मिलेगा तुम्हे बुद्धु मेरे जैसा
जो तुम्हारी बेरुखी भी सहे और प्यार भी करे

बहुत ज़ालिम हो तुम भी मुहब्बत ऐसे करते हो
जैसे घर के पिंजरे में परिंदा पाल रखा हो

फासलें तो बढ़ा रहे हो मगर ये याद रखना
मोहब्बत बार बार यूँ किसी पर मेहरबान नही होती