तू इक क़दम भी जो मेरी तरफ बढ़ा देता
मैं मंज़िलें तेरी दहलीज़ से मिला देता
तू इक क़दम भी जो मेरी तरफ बढ़ा देता
मैं मंज़िलें तेरी दहलीज़ से मिला देता
मै ये नही कहता की मेरी खबर पूछो तुम
खुद किस हाल में हो ये तो बता दिया करो
कौन कहता है के वो मुझसे बिछड़कर खुश है
उसके सामने मेरा नाम तो लेकर देखो
हमें रोता देखकर वो ये कह के चल दिए कि
रोता तो हर कोई है क्या हम सब के हो जाएँ
इसी बात ने उसे शक मेँ डाल दिया हो शायद
इतनी मोहब्बत उफ्फ कोई मतलबी ही होगा
मेरे सब्र का इंतेहा क्या पूछते हो.
वो मुझ से लिपट कर रोई भी तो किसी और के लिए.
नजर से दूर रह कर भी किसी की सोच में रहना
किसी के पास रहने का तरीका हो तो ऐसा हो
शायर बना दिया अधूरी मोहब्बत ने
मोहब्बत अगर पूरी होती तो हम भी एक ग़ज़ल होते
Er kasz
इतनी ठोकरे देने के लिए शुक्रिया ए-ज़िन्दगी
चलने का न सही सम्भलने का हुनर तो आ गया
कुछ भी नहीं मिलता खैरात में यहाँ
भीख भी देता हैं इंसान तो कम करने को अपने गुनाह ॥
जुदा होने का शौक भी पूरा कर लेना मेरे हमदम
लगता है तुझे हम जिंदा अच्छे नहीँ लगते
अब तो रहम कर हालात बदल ऐ ज़िंदगी
गये वो ज़माने जब किसी को तेरी ज़रूरत हुआ करती थी
वो तो अपनी एक आदत को भी ना बदल सका
जाने क्यूँ मैंने उसके लिए अपनी जिंदगी बदल डाली
वक़्त बीतने के बाद अक़्सर ये अहसास होता है कि
जो छूट गया वो लम्हा ज्यादा बेहतर था
भुला दूंगा तुझे ज़रा सब्र तो कर
तेरी तरह मतलबी बनने में थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही। Er kasz