मुझे रेगिस्तान मैं एक पानी का चश्मा मिल गयामुझसे ना उम्मीद होने वालो देखो समुन्द्र मिल गयाउड़ ही गया वो परिंदा जिसके पर तुमको ना दिखेदेखो तंज़ देने वालो मुझे एक खजिना मिल गयाबदला वक़्त ऐसा मेरा मुझे हेरात मैं कर दियाअभी तो रात थी ये ना जाने किसने उजाला कर दियाअब तो फ़िक्र और बड़ गई ये जाने किसने किया कर दियापैदल ही अच्छा था ये दौड़ने वालो मैं क्यों शुमार कर दिया
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