लफ्ज़ों में वो बात कहाँ जो मज़ा आँखों ही आँखों में बात करने का हैं
वो कमाल हैं

उसके आने की उम्मीद तो है पर भरोसा नहीं
मेरी नज़रों में अब वो काला धन हो गई है
Er kasz

क्यों पहनती हो चूड़ी क्यों पहनती हो कंगना
सजने का ही शोक है तो फिर बना लो न सजना

"शीकायते तो बहुत है तुझसे ए जिन्दगी
पर जो दिया तूने वो भी बहुतो को नसीब नही
er kasz

आपकी सादगी पे क़त्ल-ऐ-आम हुवे जाते है
तब क्या क़यामत होगी जब आप सवंर कर आओगे
er kasz

शायरी का बादशाह हुं और कलम मेरी रानी
अल्फाज़ मेरे गुलाम है बाकी रब की महेरबानी

👦‎मैं‬ ‪#‎लब‬ हूँ मेरी‬ बात ‪#‎तुम‬ हो ,
मैं ‪#‎तब‬ हूँ , ‪#‎जब‬ मेरे ‪#‎साथ‬ तुम हो .. Er kasz

माना की तु कीसी रानी से कम नही
पर इस बात मे कोई दम नही जब तक तेरे बादशाह हम नही
Er kasz

ज़रा देख ये दरवाज़े पे दस्तक किसने दी है
अगर ईश्क़ हो तो कहना यहा दिल नही रहता
Er kasz

कहना ही पड़ा उसे शायरी पढ़ कर हमारी
कि कंबख्त की हर बात मोहब्बत से भरी होती है
Er kasz

मैं वो हूँ जो कहता था की इश्क़ मे क्या रखा है
आजकल एक हीर ने मुझे रांझा बना रखा है
er kasz

अकसर वही रिश्ता लाजवाब होता है
जो ज़माने से नहीं ज़ज़्बातों से जन्मा होता है
er kasz

इन कागजो पर लिखे अल्फाज भी ढेर हो जाएँ
जो मै एक गजल अपने लबों से तेरे गाल पर लिख दूँ

कितने अजब रंग समेटे है बारिश ने खुद में
अमीर पकोड़े खाने को सोच रहा और किसान जहर
er kasz

अब किसी और से मुहब्बत करलू तो शिकायत मत करना
ये बुरी आदत भी मुझे तुमसे ही लगी है
er kasz