ख्वाइशों से भरा पड़ा है घर इस कदर
रिश्ते ज़रा सी जगह को तरसतें हैं
ख्वाइशों से भरा पड़ा है घर इस कदर
रिश्ते ज़रा सी जगह को तरसतें हैं
उसने पूछा की क्या पसंद है तुम्हे..??
और मैं बहुत देर तक उसे देखती रही..!!
चाँदनी की चमक से मुझे कोई गरज नही
एक चाँद को दिल में अकसर देखता हूँ
मांग लूँ यह मन्नत की फिर वही जहाँ मिले, फिर वही गोद, फिर वही माँ मिले...
तमाम लोग मेरे साथ थे मगर मैं तो....
तमाम उम्र तुम्हारी कमी के साथ रहा....
तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला
मांग लूँ यह मन्नत की फिर यही जहाँ मिले
फिर वही गोद फिर वही माँ मिले
इतने भी प्यारे नही हो तुम
ये तो मेरी चाहतों ने सर चढ़ा रखा है तुमको
वो बोलते है झूठ इतने प्यार से
मन करता है यकीं कर जाऊं उनकी हर बात पर
कहने को तो वो सबको मिला देता है
इस बार खुदा को भी ना हमें मिलाना आया
एक नींद है जो रात भर नहीं आती,
और एक नसीब है, जो ना जाने कब से सो रहा है..
क़ाश कोई ऐसा हो जो गले लगा कर कहे
तेरे दर्द से मुझे भी तकलीफ होती है
हो सके तो अब के कोई सौदा न करना;
मैं पिछली मोहब्बत में सब हार आया हूँ
युं ही हम दील को साफ रखा करते थे
पता नही था की किमत चेहरो की होती हैँ
अपना इनाम लेकर ही मानेगा
ये इश्क है जान लेकर ही मानेगा
राधे राधे