मैं क्यों कहूँ उससे की मुझसे बात करो
क्या उसे नहीं मालूम की उसके बिना मेरा दिल नहीं लगता
मैं क्यों कहूँ उससे की मुझसे बात करो
क्या उसे नहीं मालूम की उसके बिना मेरा दिल नहीं लगता
हमें पता था तेरी फितरत में है दगावाजी
हमने तो मौहब्बत ईसलिए कि थी शायद तेरी सोच बदल जाये
यूँ खाली पलकें झुका देने से नींद नहीं आती
सोते वही लोग है जिनके पास किसी की याद नहीं होती
उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है,
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती....!!
पगली तु हमारे शौख का अंदाजा कया लगाओगी।।
हम तो मोरारी बापु की कथा भी वुफर मे सुनते है।😎😎
मेरी पागल सी मोहब्बत तुम्हे बहुत याद आएगी
जब हँसाने वाले कम और रुलाने वाले ज्यादा होंगे
दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को हैं हमसे
पर ये दिल तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर होगी
मैं क्यूँ कुछ सोच कर दिल छोटा करूँ कि वो बेवफा थी,
वो उतनी ही वफ़ा, कर सकी जितनी उसकी औकात थी...
गर लफ्ज़ों में कर सकते बयान इंतेहा-ए-दर्द ए दिल
लाख तेरा दिल पत्थर का सही
कब का मोम कर देते
मेरी शायरी कितनी ही अच्छी क्यों ना हो दोस्तों
लिखने का आनंद तो आपके तारीफ़ के बाद ही आता है
बचपन में जब चाहा हँस लेते थे जहाँ चाहा रो सकते थे
अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए अश्कों को तनहाई
तुम बेशक चले गये हों इश्क का स्कूल छोड़कर
हम आज भी तेरी याद की क्लास में रोज़ हाजिरी देते है
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है न किताबें बोल पाती हैं
मेरे दर्द के थे दो गवाह दोनों बे-जुबान निकले
हम उनसे तो लड़ सकते हैं जो खुले आम दुश्मनी रखते हैं
पर उनका क्या करें जो साथ रहकर वार करते हैं
वक्त का तकाजा हर फर्ज़ को मजबूर करता है
वरना कौन पिता अपनी चाँद सी बेटी को अपने से दूर करता है