आगोश-ए-सितम में छुपाले कोई; तन्हा हूँ तड़पने से बचा ले कोई; सूखी है बड़ी देर से पलकों की जुबां; बस आज तो जी भर के रुला दे कोई।
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आगोश-ए-सितम में छुपाले कोई; तन्हा हूँ तड़पने से बचा ले कोई; सूखी है बड़ी देर से पलकों की जुबां; बस आज तो जी भर के रुला दे कोई।
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