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Badnaam Shayari
सिलवटें ही सिलवटें थी बिस्तर पर
सिलवटें ही सिलवटें थी बिस्तर पर
सिलवटें ही सिलवटें थी बिस्तर पर सुबह
यादों की करवटें ही करवटें थी रात भर।
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आज उसने हमें एक और दर्द
एक आदमी की पत्नी उससे नाराज़
तुम मुझ पर लगाओ मैं तुम
कोन जाने कब मौत का पैगाम
अकेले रहने का भी एक अलग
उसने जब से कहा है उस
सब सो गये अपने हाले दिल
सलामत रखना उनको जो हमसे नफरत
जो मुस्कुरा रहा है उसे दर्द
मुझको ऐसा दर्द मिला जिसकी दवा
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