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Badnaam Shayari
इन्सान की चाहत है कि उड़ने
इन्सान की चाहत है कि उड़ने
इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले
और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले
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कह गई थी वो कभी ना
कौन कहता है के मुसाफिर ज़ख़्मी
क्या हुआ अगर हम किसी के
दिल कितना मजबूर हैआंखों से नींद
कभी रो के मुस्कुराए कभी मुस्कुरा
अच्छा हुआ ये आँसू बेरंग है
आज उसने हमें एक और दर्द
सुनो मैं जानता हूँ तुम मेरे
हमारी गली मे ज़रा संभल कर
जी भर गया है तो बता
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