चिरागों से अगर अँधेरा दूर होता
तो चांदनी की चाहत क्यूँ होती
कट सकती अगर ये ज़िन्दगी अखेले
तो दोस्त नाम की चीज़ ही क्यूँ होत
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चिरागों से अगर अँधेरा दूर होता
तो चांदनी की चाहत क्यूँ होती
कट सकती अगर ये ज़िन्दगी अखेले
तो दोस्त नाम की चीज़ ही क्यूँ होत
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