यूँ ही नहीं मिलती मंज़िल राही को; एक जूनून सा दिल में जगाना पड़ता है; ऐसे ही नहीं बन जाते आशियाने परिंदो के; भरनी पड़ती है उड़ान बार-बार तिनका-तिनका उठाना पड़ता है।
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यूँ ही नहीं मिलती मंज़िल राही को; एक जूनून सा दिल में जगाना पड़ता है; ऐसे ही नहीं बन जाते आशियाने परिंदो के; भरनी पड़ती है उड़ान बार-बार तिनका-तिनका उठाना पड़ता है।
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