अजब अपना हाल होता जो वस्ल-ए-यार होता; कभी जान सदके होती कभी दिल निसार होता; कोई फ़ित्ना या क़यामत न फिर अश्कार होता; तेरे दिल पे ज़ालिम काश मुझे इख़्तियार होता।
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अजब अपना हाल होता जो वस्ल-ए-यार होता; कभी जान सदके होती कभी दिल निसार होता; कोई फ़ित्ना या क़यामत न फिर अश्कार होता; तेरे दिल पे ज़ालिम काश मुझे इख़्तियार होता।
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