क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआर का; क्या इश्क़ पाएदार से ना-पाएदार का; वो इश्क़ जिस की शमा बुझा दे अजल की फूँक; उस में मज़ा नहीं तपिश-ओ-इंतिज़ार का।
Like (0) Dislike (0)
क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआर का; क्या इश्क़ पाएदार से ना-पाएदार का; वो इश्क़ जिस की शमा बुझा दे अजल की फूँक; उस में मज़ा नहीं तपिश-ओ-इंतिज़ार का।
Your Comment