दिल के लुट जाने का इज़हार ज़रूरी तो नहीं; यह तमाशा सरे बाजार ज़रूरी तो नहीं; मुझे था इश्क़ तेरी रूह से और अब भी है; जिस्म से कोई सरोकार ज़रूरी तो नहीं।
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दिल के लुट जाने का इज़हार ज़रूरी तो नहीं; यह तमाशा सरे बाजार ज़रूरी तो नहीं; मुझे था इश्क़ तेरी रूह से और अब भी है; जिस्म से कोई सरोकार ज़रूरी तो नहीं।
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