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Dard Shayari
हसरत थी की कभी वो भी
हसरत थी की कभी वो भी
हसरत थी की कभी वो भी हमे मनाये..
पर ये कम्ब्खत दिल कभी उनसे रूठा ही नही..
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हमारी किसी बात से खफा मत
यूँ ना खींच मुझे अपनी तरफ
हथियार चाहे तलवार हो या तमंचा
नफरतों को जलाओ मोहोब्बत की रौशनी
ये बात कैसे गंवारा करेगा दिल
ये तो शौक है मेरा ददॅ
जिस चेहरे को देख कर हसते
suno mujhe sirf itna bta do
सुना है की समन्दर को बहुत
भीड़ में खड़ा होना मकसद नही
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