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Dard Shayari
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ
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तेरी नाराजगी वाजिब है दोस्तमैं भी
कोई इल्जाम रह गया हो तो
तेरे गुरूर को देखकर तेरी तमन्ना
चुप चाप चल रहे थे अपनी
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने
देख कर उसको तेरा यूँ पलट
मै इस तरह लिखता हूँ शायरी
किसी ने मुझसे पूछा कैसी है
हमारा तो शौक है तलवार रखने
अगर तेरी नजरें कतल करने में
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