उज़ड़ जाते है सर से पाव तक वो लोग
जो किसी बेपरवाह से बेपनाह मोहब्बत करते है
उज़ड़ जाते है सर से पाव तक वो लोग
जो किसी बेपरवाह से बेपनाह मोहब्बत करते है
सिर्फ तूने ही कभी मुझको अपना न समझा
जमाना तो आज भी मुझे तेरा दीवाना कहता है
सच बोलने में या सुनने में कोई दिक्कत नहीं है
बस हज़म करने में दिक्कत होती है
जब मैं डूबा तो समुन्दर को भी हैरत हुयी
अजीब शख्स है किसी को पुकारता भी नहीं
कितनी खूबसूरत हो जाती है उस वक्त दुनिया
जब कोई अपना कहता है तुम याद आ रहे हो
मैंने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी
अगर हमें बिकना ही होता तो आज यूँ तनहा न होते
मोहब्बत के हवाले से बहुत जालिम हो तुम ,
तोड़ देते हो मुझें अपने वादें की तरह
ख्वाईशे कम पड गई तो ख्वाबो को जुटा दीया
कुछ वो लुट गए कुछ हमने खुद लुटा दिया
बड़ी ही ताकत थी उनके अल्फ़ाज़ में यारों
पत्थर सा दिल मेरा पल भर में चूर कर दिया
अजीब सील-सीला है जिन्दगी का
कोई भरोसे के लिये रोया और कोई भरोसा कर के रोया
मोह्हबत का सबसे कमज़ोर पहलु ये है कि
ये किसी घटिया इंसान के साथ भी हो सकती है
मैंने उसे कभी हासिल ही नहीं किया
फिर भी हर लमहा लगता है कि मैंने उसे खो दिया
मुहब्बत में झुकना कोई अजीब बात नहीं
चमकता सूरज भी तो ढल जाता है चाँद के लिए
भीड़ में खड़ा होना मकसद नही है मेरा
बल्कि भीड़ जिसके लिए खड़ी है वो बनना है मुझे
नकाब तो उनका सर से लेकर पाँव तक था
मगर आँखें बता रही थी Muhabbat की शौकीन वो भी थी
G.R..s