कौन जाने कब मौत का पैगाम आ जाये; ज़िंदगी की आखिरी शाम आ जाये; रहते हैं हम सदा इसी इंतज़ार में; कि शायद कभी आपका भी सलाम आ जाये। सुप्रभात!
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कौन जाने कब मौत का पैगाम आ जाये; ज़िंदगी की आखिरी शाम आ जाये; रहते हैं हम सदा इसी इंतज़ार में; कि शायद कभी आपका भी सलाम आ जाये। सुप्रभात!
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