दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैं; जनाब महफ़िल में आते ही नहीं हैं; हम सजाते हैं महफ़िल हर शाम; एक वो हैं जो कभी तशरीफ़ लाते ही नहीं हैं!
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दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैं; जनाब महफ़िल में आते ही नहीं हैं; हम सजाते हैं महफ़िल हर शाम; एक वो हैं जो कभी तशरीफ़ लाते ही नहीं हैं!
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