मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया; तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया; कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख्तसर मगर; कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया।
Like (0) Dislike (0)
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया; तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया; कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख्तसर मगर; कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया।
Your Comment