मत बनाना रिश्ता इस जहां में; बहुत मुश्किल उन्हें निभाना होगा; हर एक रिश्ता एक नया ग़म देगा; एक तरफ बेबस तु और एक तरफ हँसता ज़माना होगा।
मत बनाना रिश्ता इस जहां में; बहुत मुश्किल उन्हें निभाना होगा; हर एक रिश्ता एक नया ग़म देगा; एक तरफ बेबस तु और एक तरफ हँसता ज़माना होगा।
मैंने रब से कहा वो छोड़ के चली गई; पता नहीं उसकी क्या मजबूरी थी; रब ने कहा इसमें उसका कोई कसूर नहीं; यह कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी।
कब तक रह पाओगे आखिर यूँ दूर हम से; मिलना पड़ेगा आखिर कभी ज़रूर हम से; नज़रें चुराने वाले ये बेरुखी है कैसी; कह दो अगर हुआ है कोई कसूर हम से।
कितना समझाया दिल को कि तु प्यार ना कर; किसी के लिए खुद को बेक़रार ना कर; वो तेरे लिए नहीं है नादान; ऐ पागल किसी और की अमानत का इंतज़ार ना कर!
कितना बेबस है इंसान किस्मत के आगे; कितना दूर है ख्वाब हकीकत के आगे; कोई रुकी हुई सी धड़कन से पूछे; कितना तड़पता है यह दिल मोहब्बत के आगे।
वो समझें या ना समझें मेरे जज्बात को; मुझे तो मानना पड़ेगा उनकी हर बात को; हम तो चले जायेंगे इस दुनिया से; मगर आंसू बहायेंगे वो हर रात को।
वादा करके निभाना भूल जाते हैं; लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं; ऐसी आदत हो गयी है अब तो सनम की; रुलाते तो हैं मगर मनाना भूल जाते हैं।
क्यों उन्हें हमारी सदा सुनाई नहीं देती; जाने क्यों वो हमसे जुदा रहता है; लौट आती है इबादत भी मेरी खाली; जाने किस मंज़िल पे खुदा रहता है।
मानते हैं सारा जहाँ तेरे साथ होगा; खुशी का हर लम्हा तेरे पास होगा; जिस दिन टूट जाएँगी साँसे हमारी; उस दिन तुझे हमारी कमी का एहसास होगा।
कुछ आँसू होते हैं जो बहते नहीं; लोग अपने प्यार के बिना रहते नहीं; हम जानते हैं आपको भी आती है हमारी याद; पर जाने क्यों आप हमसे कहते नहीं।
मोहब्बत का मेरा यह सफर आख़िरी है; ये कागज ये कलम ये गजल आख़िरी है; फिर ना मिलेंगे अब तुमसे हम कभी; क्योंकि तेरे दर्द का अब ये सितम आख़िरी है।
हमें उनसे कोई शिकायत नहीं; शायद हमारी किस्मत में चाहत नहीं! मेरी तकदीर को लिखकर तो ऊपर वाला भी मुकर गया; पूछा तो कहा ये मेरी लिखावट नहीं !
हमें उनसे कोई सिकायत नहीं; शायद हमारी किस्मत में चाहत नहीं! मेरी तकदीर को लिखकर तो ऊपर वाला भी मुकर गया; पूछा तो कहा ये मेरी लिखावट नहीं !
कोई रिश्ता टूट जाये दुख तो होता है; अपने हो जायें पराये दुख तो होता है; माना हम नहीं प्यार के काबिल; मगर इस तरह कोई ठुकराये दुख तो होता है।
बड़ी उम्मीद थी उनको अपना बनाने की; तमन्ना थी उनके हो जाने की; क्या पता था जिनके हम होना चाहते हैं; उनको आदत ही नहीं थी किसी को अपना बनाने की!