एक वफ़ा को पाने की कोशिश में; ज़ख़्मी होती हैं वफ़ाएं कितनी; कितना मासूम सा लगता है लफ्ज़ मोहब्बत; और इस लफ्ज़ से मिलती हैं सज़ाएं कितनी।

भुला के मुझको अगर तुम भी हो सलामत; तो भुला के तुझको संभलना मुझे भी आता है; नहीं है मेरी फितरत में ये आदत वरना; तेरी तरह बदलना मुझे भी आता है।

एक अजनबी से मुझे इतना प्यार क्यों है! इंकार करने पर चाहत का इकरार क्यों है! उसे पाना नहीं मेरी तकदीर में शायद! फिर भी हर मोड़ पर उसी का इन्तज़ार क्यों है!

हो अगर कोई शिकायत मुझ..
तो साफ साफ कह देना..

सबको मालुम है की जिंदगी बेहाल है
फिर भी लोग पूछते है क्या हाल है

अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे; पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे।

जरा सा भी नही पिघलता दिल तेरा; इतना क़ीमती पत्थर कहाँ से ख़रीदा है।

पत्थर कहा गया कभी शीशा कहा गया; दिल जैसी एक चीज़ को क्या-क्या कहा गया।

लेकर के मेरा नाम वो मुझे कोसता है; नफरत ही सही पर वो मुझे सोचता तो है।

ग़जब किया तेरे वादे पे एतबार किया; तमाम रात किया क़यामत का इंतज़ार किया।

मौजूद थी उदासी अभी तक पिछली रात की
बहला था दिल ज़रा सा की फिर रात हो गई

तमाम रात मेरे घर का एक दर खुला रहा; मैं राह देखती रही वो रास्ता बदल गया।

मेरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर अख़्तर ; ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है।

कहाँ तक सुनेगी रात कहाँ तक सुनाएंगे हम; शिकवे सारे सब आज तेरे रुबरु करें।

आवाज़ दी है तुमने कि धड़का है दिल मेरा; कुछ ख़ास फ़र्क़ तो नहीं दोनों सदाओं में।