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Husan Shayari
अपनी आदतों के अनुसार चलने में
अपनी आदतों के अनुसार चलने में
अपनी आदतों के अनुसार चलने में इतनी गलतिया नहीं होतीं
जितनी दुनिया का लिहाज रखकर चलने में होती हैं
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मैंने हर दर्द में इंसान को
शायरी से भरे पन्नों को छूकर
उसे खुदा ने सब कुछ दिया
वो अपनी ज़िंदगी में हुआ मशरूफ
वो सामने थी और हम पलके
उसकी माँ ने कहा: बेटा तूने
कोई नया जखम नही दिया उसनेपता
मैने उसके नरम होठो को चुमने
इतना हक ना दे मुझे हम
हम जिसे अपना चाँद कहते थे
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