सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर
कुछ इसलिये भी ख्वाइशो को मार देता हूँ
माँ कहती है घर की जिम्मेदारी है तुझ पर
तेरी यादों की कोई सरहद होती तो अच्छा होता
खबर तो होती की सफ़र कितना तय करना है
हम ने चलना छोड़ दिया अब उन राहों में
टूटे वादों के टुकड़े चुभते है अब पांवो में
क्या बटवारा था हाथ की लकीरों का भी
उसके हिस्से में प्यार मेरे हिस्से में इंतज़ार
इंसान की फितरत को समझते हैं ये परिंदे,
कितनी भी मोहब्बत से बुलाना मगर पास नहीं आयेंगे..
सबकी ज़िन्दगी में खुशिया देने वाले मेरे दोस्त की ज़िन्दगी में कोई गम न हो
उसको मुझसे भी अच्छे दोस्त मिले अब इस दुनिया में हम न हो
नफरतों में क्या रखा है मोहब्बत से जीना सीखो
क्यूंकि ये दुनिया न तो मेरा घर है और न आपका ठिकाना
और दुसरा मौका सिफॅ कहानिया देती है जिन्दगी नही
एक दिन दर्द ने दौलत से कहा
तुम कितनी खुशनसीब हो कि हर कोई तुम्हें पाने की कोशिश करता है
और मैं इतना बदनसीब हूँ कि हर कोई मुझसे दूर जाने की कोशिश करता है
दौलत ने बहुत प्यारा जवाब दिया
खुशनसीब तो तुम हो जिसको पाकर लोग अपनो को याद करते हैं
बदनसीब तो मैं हूँ जिसको पा कर लोग अक्सर अपनों को भूल जाते हैँ
मुझे किसी के बदल जाने का गम नही
बस कोई था जिस पर खुद से ज्यादा भरोसा था
दिल की आवाज से नगमें बदल जाते हैं.:
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साथ ना दें तो अपने बदल जाते हैं..
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नज़र-नज़र का फर्क है, हुस्न का नहीं ;
महबूब जिसका भी हो बेमिसाल होता है !!
यार सुना है इश्क से तेरी बहुत बनती है
एक एहसान कर उस से मेरा कसूर तो पूछ