अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे; तेरा मुज़रिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे; ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको; सोचता हूँ कहूँ तुझसे मगर जाने दे!
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अपनी आँखों के समुंदर में उतर जाने दे; तेरा मुज़रिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे; ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको; सोचता हूँ कहूँ तुझसे मगर जाने दे!
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