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Kashish Shayari
मजबूरियॉ ओढ के निकलता हूं घर
मजबूरियॉ ओढ के निकलता हूं घर
मजबूरियॉ ओढ के निकलता हूं घर से आजकल वरना शौक तो आज भी है बारिशों में भीगनें का
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कभी खुशी भी मिले हरपल गम
बाहर के सर्द मौसम पर तो
बादलों के दरमियान कुछ ऐसी साज़िश
ye mausam b hume itni appeal
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना
उन्होंने देखा और हमारे आंसू गिर
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ में
मौसम को देखो कितना हसीन है
एक पुराना मौसम लौटा याद भरी
आज फिर मौसम नम हुआ मेरी
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